मेरी सहोदरा (आशूदास आशीष)
अश्रु हैं दृगों में, हृदय है व्याकुल
दीप-पतंग की भाँति, मिलने को मन आतुर
प्रतीक्षा है आगमन की, सहोदरा आयेगी
कहेगी क्षृंग जल की, गीत हर्ष का गायेगी
नीर बहाऊँगा, रोष जताऊँगा
स्थिर बैठा हूँ, कही न जाऊँगा।
प्रीति है मुझसे उन्हें, मैं जानता हूँ,
किसी दुविधा में होगी, मैं मानता हूँ,
अचानक आहट हुई, किसी के कदमों की
वह नहीं थी, यह घड़ी थी सदमों की
तन बीजुरी हुआ, मन हुआ प्रस्तर
लोचन आया नीर, व्यथा का बड़ा स्तर
एक आहट और हुई, फिर सगर्भा न आयी
प्रतीक्षा में बैठे थे, वो अब आयी, अब आयी
आहट पर आहट हुई, भाँति-भाँति के पग की,
आशा मेरी टूट गई, जब देखी रीति जग की।
अब बहिन न आयेगी, उजड़ा मेरा उपवन
कैसे धीर रखूँ मन में, चली गई अब दूर पवन
आँखों से आँसू, अब बहते रहेंगे
हृदय के दुखों को, अब किससे कहेंगे।
*आशूदास आशीष हिंदी विभाग,अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय में शोधार्थी हैं।
दीप-पतंग की भाँति, मिलने को मन आतुर
प्रतीक्षा है आगमन की, सहोदरा आयेगी
कहेगी क्षृंग जल की, गीत हर्ष का गायेगी
नीर बहाऊँगा, रोष जताऊँगा
स्थिर बैठा हूँ, कही न जाऊँगा।
प्रीति है मुझसे उन्हें, मैं जानता हूँ,
किसी दुविधा में होगी, मैं मानता हूँ,
अचानक आहट हुई, किसी के कदमों की
वह नहीं थी, यह घड़ी थी सदमों की
तन बीजुरी हुआ, मन हुआ प्रस्तर
लोचन आया नीर, व्यथा का बड़ा स्तर
एक आहट और हुई, फिर सगर्भा न आयी
प्रतीक्षा में बैठे थे, वो अब आयी, अब आयी
आहट पर आहट हुई, भाँति-भाँति के पग की,
आशा मेरी टूट गई, जब देखी रीति जग की।
अब बहिन न आयेगी, उजड़ा मेरा उपवन
कैसे धीर रखूँ मन में, चली गई अब दूर पवन
आँखों से आँसू, अब बहते रहेंगे
हृदय के दुखों को, अब किससे कहेंगे।
*आशूदास आशीष हिंदी विभाग,अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय में शोधार्थी हैं।
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