काश तुम होते !! (मुहम्मद नवेद अशरफ़ी )
सोचता हूँ, काश तुम होते...
अभी संदली धूप,
उफ़क़ के आग़ोश में लिपटी होगी।
अभी ओस की बूँदो पे
वही जोबन छाया होगा।
वो स्लेटी रंग की आसमानी सिल,
अभी नीलम से आंखमिचौली करती होगी।
शिवालय के घण्टे की चमक अभी,
मस्जिद की महराब पे चटकी होगी।
अभी आदम का बेटा किसी मीनारे से,
बिलाली कूक मे चहचहाता होगा....
सोचता हूँ इस धुंधलकी सुबह में,
मेरा सरहाना तुम्हारे फ़ौन से हिलता होगा,
फिर उसी गर्म दबे लहजे में,
तुम ये मुझसे कहते...
जागो बंधु प्यारे, इतना नहीं सोते !!
काश तुम होते...
काश, तुम होते !!!!
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*मुहम्मद नवेद अशरफ़ी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में लोकप्रशासन (स्नातकोत्तर) के छात्र हैं।
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